❤श्री राधा रासबिहारी❤

 
❤श्री राधा रासबिहारी❤
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मेरे धन-जन-जीवन तुम ही, तुम ही तन-मन, तुम सब धर्म। तुम ही मेरे सकल सुखसदन, प्रिय निज जन, प्राणोंके मर्म॥ तुम्हीं एक बस, आवश्यकता, तुम ही एकमात्र हो पूर्ति। तुम्हीं एक सब काल सभी विधि हो उपास्य शुचि सुन्दर मूर्ति॥ तुम ही काम-धाम सब मेरे, एकमात्र तुम लक्ष्य महान। आठों पहर बसे रहते तुम मम मन-मन्दिरमें भगवान॥* सभी इन्द्रियोंको तुम शुचितम करते नित्य स्पर्श-सुख-दान। बाह्याभयन्तर नित्य निरन्तर तुम छेड़े रहते निज तान॥ कभी नहीं तुम ओझल होते, कभी नहीं तजते संयोग। घुले-मिले रहते करवाते करते निर्मल रस-सभोग॥ पर इसमें न कभी मतलब कुछ मेरा तुमसे रहता भिन्न। हु‌ए सभी संकल्प भंग मैं-मेरेके समूल तरु छिन्न॥ भोक्ता-भोग्य सभी कुछ तुम हो, तुम ही स्वयं बने हो भोग। मेरा मन बन सभी तुम्हीं हो अनुभव करते योग-वियोग॥
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shwetashweta
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