♥जय श्रीराधे♥

 
♥जय श्रीराधे♥
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मम स्वामिनि छवि अभिरामिनी | गौर वदनि, मृदु हँसनि दशन – दुति, दमकति जनु दुति दामिनी | रोम रोम ते प्रेमसुधारस, छलकावति नित भामिनी | सो रस पियत अघात न मोहन, मानि आपनी स्वामिनी | चलति लली झुकि झूमि झूमि इमि, लजवति गति गजगामिनी | लखौं ‘कृपालु’ कबहुँ हमहूँ छवि, स्वामिनि राधा नामिनी || भावार्थ – हमारी स्वामिनी जी का रूप सर्वथा अनुपम है | उनके गोरे शरीर की चमक, मंद – मंद मुस्कान तथा दाँतों की चमक, बिजली की चमक को भी लज्जित करती है | उनके रोम – रोम से प्रेम – रस छलकता रहता है, जिस रस को पीते हुए श्यामसुन्दर नहीं अघाते | वे श्यामसुन्दर की भी स्वामिनी हैं | वे जब झूमती हुई चलती हैं तो मदमत्त गजराज भी लज्जित हो जाता है | ‘श्री कृपालु जी’ कहते हैं कि हम भी कभी उन स्वामिनी राधा जी के दर्शन करके कृतार्थ होंगे |
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