❤️श्री राधा रासबिहारी❤️ Happy Sharad Purnima

 
❤️श्री राधा रासबिहारी❤️ Happy Sharad Purnima
जबहिं बन मुरली स्रवन परी । चकित भईं गोप-कन्या सब, काम-धाम बिसरीं ॥ कुल मर्जाद बेद की आज्ञा, नैंकहुँ नहीं डरीं । स्याम-सिंधु, सरिता-ललना-गन, जल की ढरनि ढरीं ॥ अंग-मरदन करिबे कौं लागौं, उबटन तेल धरी । जो जिहिं भाँति चली सो तैसेहिं, निसि बन कौं जुखरी ॥ सुत पति-नेह, भवन-जन-संका, लज्जा नाहिं करी । सूरदास-प्रभु मन हरि लीन्हौ, नागर नवल हरी ॥1॥ चली बन बेनु सुनत जब धाइ । मातु पिता-बाँधव अति त्रासत, जाति कहाँ अकुलाइ ॥ सकुच नहीं, संका कछु नाहीं, रैनि कहाँ तुम जाति । जननी कहति दई की घाली, काहे कौं इतराति ॥ मानति नहीं और रिस पावति, निकसी नातौ तोरि । जैसैं जल-प्रवाह भादौं कौ, सो को सकै बहोरि ॥ ज्यौं केंचुरी भुअंगम त्यागत, मात पिता यो त्यागे । सूर स्याम कैं हाथ बिकानी, अलि अंबुज अनुरागे ॥2॥ मातु-पिता तुम्हरे धौं नाहीं । बारंबार कमल-दल-लोचन, यह कहि-कहि पछिताहीं ॥ उनकैं लाज नहीं, बन तुमकौं आवत दीन्हीं राति । सब सुंदरी, सबै नवजोबन, निठुर अहिर की जाति । की तुम कहि आईं, की ऐसेहिं कीन्हीं कैसी रीति । सूर तुमहिं यह नहीं बूझियै, करी बड़ी बिपरीति ॥3॥ इहिं बिधि बेद-मारग सुनौ । कपट तजि पति करौ, पूजा कहा तुम जिय गुनौ ॥ कंत मानहु भव तरौगी, और नाहिं उपाइ । ताहि तजि क्यौं बिपिन आईं, कहा पायौ आइ ॥ बिरध अरु बिन भागहूँ कौ, पतित जौ पति होइ । जऊ मूरख होइ रोगी, तजै नाहीं जोइ ॥ यहै मैं पुनि कहत तुम सौं, जगत मैं यह सार ॥ सूर पति-सेवा बिना क्यौं, तरौगी संसार ॥4॥ तुम पावत हम घोष न जाहिं । कहा जाइ लैहैं हम ब्रज, यह दरसन त्रिभुवन नाहिं ॥ तुमहूँ तैं ब्रज हितू न कोऊ, कोटि कहौं नहिं मानैं । काके पिता. मातु हैं काकी, काहूँ हम नहिं मानैं ॥ काके पति, सुत-मोह कौन कौ, घरही कहा पठावत । कैसौ धर्म, पाप है कैसौ, आप निरास करावत ॥ हम जानैं केवल तुमहीं कौं, और बृथा संसार । सूर स्याम निठुराई तजियै, तजियै बचन-विकार ॥5॥ कहत स्याम श्रीमुख यह बानी । धन्य-धन्य दृढ़ नेम तुम्हारौ, बिनु दामनि मो हाथ बिकानी ॥ निरदय बचन कपट के भाखे, तुम अपनैं जिय नैंकु न आनी । भजीं निसंक आइ तुम मोकौं, गुरुजन की संका नहिं मानी ॥ सिंह रहैं जंबुक सरनागत, देखी सुनी न अकथ कहानी । सूर स्याम अंकम भरि लीन्हीं, बिरह अग्नि-झर तुरत बुझानी ॥6॥ कियौ जिहिं काज ताप घोष-नारी । देहु फल हौं तुरत लेहु तुम अब घरी; हरष चित करहु दुख देहु डारी ॥ रास रस रचौं, मिलि संग बिलसौ, सबै बस्त्र हरि कहि जो निगम बानी । हँसत मुख मुख निरखि, बचन अमृत बरषि, कृपा-रस-भरे सारंग पानी ॥ ब्रज-जुवति चहुँ पास, मध्य सुँदर स्याम, राधिका बाम, अति छबि बिराजै । सूर नव-जलद-तनु, सुभन स्यामल कांति, इंदु-बहु-पाँति-बिच अधिक छाजै ॥7॥ मानो माई घन घन अंतर दामिनि । घन दामिनि दामिनि घन अंतर, सोभित हरि-ब्रज भामिनि ॥ जमुन पुलिन मल्लिका मनोहर, सरद-सुहाई-जामिनि । सुन्दर ससि गुन रूप-राग-निधि, अंग-अंग अभिरामिनि ॥ रच्यौ रास मिलि रसिक राइ सौं, मुदित भईं गुन ग्रामिनि । रूप-निधान स्याम सुंदर तन, आनँद मन बिस्रामिनि ॥ खंजन-मीन-मयूर-हंस-पिक, भाइ-भेद गज-गामिनि । को गति गनै सूर मोहन सँग, काम बिमोह्यौ कामिनि ॥8॥ गरब भयौ ब्रजनारि कौं, तबहिं हरि जाना । राधा प्यारी सँग लिये, भए अंतर्धाना ॥ गोपिनि हरि देख्यौ नहीं, तब सब अकुलाई । चकित होइ पूछन लगीं, कहँ गए कन्हाई ॥ कोउ मर्म जानै नहीं, व्याकुल सब बाला । सूर स्याम ढूढ़ति फिरैं, जित-जित ब्रज-बाला ॥9॥ तुम कहूँ देखे श्याम बिसासी । तनक बजाइ बाँस की मुरली, लै गए प्रान निकासी ॥ कबहुँक आगैं, कबहूँक पाछैं, पग-पग भरति उसासि । सूर स्याम-दरसन के कारन, निकसीं चंद-कला सी ॥10॥ कहि धौं री बन बेलि कहूँ तैं देखे हैं नँद-नंदन । बूझहु धौं मालती कहूँ तैं, पाए हैं तन-चंदन ॥ कहिं धौं कुंद कदंब बकुल, बट, चंपक, ताल तमाल । कहिं धौं कमल कहाँ कमलापति, सुन्दर नैन बिसाल ॥ कहि धौं री कुमुदिन, कदली, कछु कहि बदरी कर बीर । कहि तुलसी तुम सब जानति हौ, कहँघनस्याम सरीर ॥ कहिं धौं मृगी मया करि हमसौं, कहि धौं मधुप मराल । सूरदास-प्रभु के तुम संगी, हैं कहँ परम कृपाल ॥11॥ स्याम सबनि कौं देखही, वै देखतिं नाहीं । जहाँ तहाँ व्याकुल फिरैं, धीर न तनु माहीं ॥ कोउ बंसीबट कौं चलो, कोउ बन घन जाहीं । देखि भूमि वह रास की, जहँ-तहँ पग-छाहीं ॥ सदा हठीली, लाड़िली, कहि-कहि पछिताहीं । नैन सजल जल ढारहीं, ब्याकुल मन माहीं । एक-एक ह्वै ढूँढ़हीं, तरुनी बिकलाहीं । सूरज प्रभु कहुँ नहिं मिले, ढूँढ़ति द्रुम पाहीं ॥12॥ तुम नागरि जिय बढ़ायौ । मो समान तिय और नहिं कोउ, गिरधर मैं हीं बस करि पायौ ॥ जोइ-जोइ कहति करत पिय सोइ सोइ, मेरैं ही हित रास उपायौ । सुंदर, चतुर और नहिं मोसी, देह धरे कौ भाव जनायौ ॥ कबहुँक बैठि जाति हरि कर धरि, कबहुँ मैं अति स्रम पायौ । सूर स्याम गहि कंठ रही तिय, कंध चढ़ौयह बचन सुनायौ ॥13॥ कहै भामिनी कंत सौं,मौहिं कंध चढ़ावहु । नृत्य करत अति स्रम भयो, ता स्रमहिं मिटावहु ॥ धरनी धरत बनै नहीं, पट अतिहिं पिराने । तिया-बचन सुनि गर्ब के, पिय मन मुसुकाने ॥ मैं अबिगत, अज, अकल हौं, यह मरम न पायौ । भाव बस्य सब पैं रहौं, निगमनि यह गायौ ॥ एक प्रान द्वै देह हैं, द्विविधा नहिं यामैं ॥ गर्बकियौ नरदेह तैं, मैं रहौं, न तामैं ॥ सूरज-प्रभु अंतर भए, संग तैं तजि प्यारी । जहँ की तहँ ठाढ़ी रही, वह घोष-कुमारी ॥14॥ जौ देखैं द्रुम के तरैं, मुरझी सुकुमारी । चकित भईं सब सुंदरी यह तौ राधा री ॥ याही कौं खोजति सबै, यह रही कहाँ री ॥ धाइ परीं सब सुंदरी, जो जहाँ-तहाँ री । तन की तनकहुँ सुधि नहीं, व्याकुल भईं बाला । यह तौ अति बेहाल है, कहुँ गए गोपाला ॥ बार-बार बूझतिं सबै,नहिं बोलति बानी । सूर स्याम काहैं तजी, कहि सब पछितानी ॥15॥ केहिं मारग मैं जाऊँ सखी री, मारग मोहिं बिसर्‌यौ । ना जानौं कित ह्वै गए मोहन, जात न जानि पर्‌यौ ॥ अपनौ पिय ढूँढ़ति फिरौं, मौहिं मिलिबे कौ चाव । काँटो लाग्यौ प्रेम कौ, पिय यह पायौ दाव ॥ बन डोंगर ढूँढ़त फिरी, घर-मारग तजि गाउँ । बूझौं द्रुम, प्रति बेलि कोउ, कहै न पिय कौ नाउँ ॥ चकित भई, चितवन फिरी, ब्याकुल अतिहिं अनाथ । अब कैं जौ कैसहुँ मिलौं, पलक न त्यागौं साथ ॥ हृदय माँझ पिय-घर करौं, नैननि बैठक देउँ । सूरदास प्रभु सँग मिलैं, बहुरि रास-रस लेउँ ॥16॥ कृपा सिंधु हरि कृपा करौ हो । अनजानैं मन गर्व बढ़ायौ, सो जिनि हृदय धरौ हो । सोरह सहस पीर तनु एकै, राधा जिब, सब देह । ऐसी दसा देखि करुनामय, प्रगटौ हृदय-सनेह ॥ गर्व-हत्यौ तनु बिरह प्रकास्यौ, प्यारी व्याकुल जानि । सुनहु सूर अब दरसन दीजै, चूक लई इनि मानि ॥17॥ अंतर तैं हरि प्रगट भए । रहत प्रेम के बस्य कन्हाई, जुवतिनि कौं मिलि हर्ष दए ॥ वेसोइ सुख सबकौ फिरि दीन्हौं, वहै भाव सब मानि लियौ । वै जानति हरि संग तबहिं तै, वहै बुद्धि सब, वहै हियौ ॥ वहै रास-मंडल-रस जानतिं, बिच गोपी, बिच स्याम धनी । सूर स्याम स्यामा मधि नायक, वहै परस्पर प्रीति ॥18॥ आजु हरि अद्भुत रास उपायौ । एकहिं सुर सब मोहित कीन्हे, मुरली नाद सुनायौ ॥ अचल चले, चल थकित भए, सब मुनिजन ध्यान भुलायौ । चंचल पवन थक्यौ नहिं डोलत, जमुना उलटि बहायौ ॥ थकित भयौ चंद्रमा सहित-मृग, सुधा-समुद्र बढ़ायौ । सूर स्याम गोपिनि सुखदायक, लायक दरस दिखायौ ॥19॥ बनावत रास मंडल प्यारी । मुकुट की लटक, झलक कुंडल की, निरतत नंद दुलारौ । उर बनमाला सोह सुंदर बर, गोपिनि कैं सँग गावै । लेत उपज नागर नागरि सँग, बिच-बिच तान सुनावै ॥ बंसीबट-तट रास रच्यौ है, सब गोपिनि सुखकारौ । सूरदास प्रभु तुम्हरे मिलने सौं, भक्तनि प्रान अधारौ ॥20॥ रास रस स्रमित भईं ब्रजबाला । निसि सुख दै यमुना-तट लै गए, भोर भयो तिहिं काल ॥ मनकामना भई परिपूरन, रही न एकौ साध । षोड़स सहस नारि सँग मोहन, कीन्हौं सुख अवगाधि ॥ जमुना-जल बिहरत नँद-नंदन, संग मिला सुकुमारि । सूर धन्य धरनी बृन्दावन, रबि तनया सुखकारि ॥21॥ ललकत स्याम मन ललचात । कहत हथं घर जाहु सुंदरि, मुख न आवति बात । षट सहस दस गोप कन्या, रैनि भोगीं रास । एक छिन भईं कोउ न प्यारी, सबनि पूजी आस । बिहँसि सब घर-घर पठाईं ब्रज-बाल । सूर-प्रभु नँद-धाम पहुँचे, लख्यौ काहु न ख्याल ॥22॥ ब्रजबासी तब सोवत पाए । नंद-सुवन मति ऐसी ठानी, उनि घर लोग जगाए । उठे प्रात-गाथा मुख भाषत, आतुर रैनी बिहानी ॥ एँडत अँग जम्हात बदन भरि, कहत सबै यह बानी ॥ जो जैसे सो तैसे लागे, अपनैं-अपनै काज । सूर स्याम के चरित अगोचर, राखी कुल की लाज ॥23॥ ब्रज-जुवती रस-रास पगीं । कियौ स्याम सब को मन भायौ निसि रति -रंग जगीं ॥ पूरन ब्रह्म, अकल, अबिनासी, सबनि संग सुख चीन्हौ । जितनी नारि भेष भए तितने, भेद न काहु कीन्हौ ॥ वह सुख टरत न काहूँ मन तैं, पति हित-साध पुराईं । सूर स्याम दूलह सब दुलहिनि, निसि भाँवरि दै आईं ॥24॥ रास रस लीला गाइ सुनाऊँ । यह जस जहै, सुनै मुख स्रवननि, तिहि चरननि सिर नाऊँ ॥ कहा कहौं वक्ता स्रोता फल, इक रसना क्यौं गाऊँ । अष्ट सिद्धि नवनिधि सुख-संपति, लघुता कर दरसाऊँ । जौ परतीति होइ हिरदै मैं, जग-माया धिक देखै । हरि-जन दरस हरिहि सम बूझे, अंतर कपट न लेखै ॥ धनि वक्ता, तेई धन श्रोता, स्याम निकट हैं ताकैं । सूर धन्य तिहि के पितु माता, भाव भगति है जाकें ॥25॥
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Kommentare

mimib06

mimib06 sagt:

Vor 1906 Tage
beautiful (⁀‵⁀) ♥♥♥♥♥ 
.`⋎´ ♥¸.•°*”˜˜”*°•♥  
… ♥¸.•°*”˜˜”*° ♥ 
…•°*”˜˜”*°•♥ 5☆★☆★☆ stars  
marthannb

marthannb sagt:

Vor 1970 Tage
Beautiful
SRK-Fan

SRK-Fan sagt:

Vor 1970 Tage
::: (\_(\ ...*...*...*...*...*...*...*...*...*
*: (=' :') Amazing creation!More five!
  (,('')('')¤...*...*...*...*...*...*...*...*...*
4r13s

4r13s sagt:

Vor 1973 Tage
Beautiful ♥
normaly217

normaly217 sagt:

Vor 1976 Tage
genial creacion!!
elizamio

elizamio sagt:

Vor 1979 Tage
     ∧_∧ 
  (= ° ヮ °) つ: * ♥ ℒℴѵℯ. • * ♡ * • .¸ 
 • .. (, (”) (”) ¤ ° .¸¸. • ´5 sᴛᴀʀs ❤
longplays

longplays sagt:

Vor 1980 Tage
     Super         
   5☆★☆★☆      for your beautiful Work. Thank
(¯•♥•¯)(¯♥•¯)  you for your Friendship and
_`•.¸(¯•♥•¯)   values with nice comments.
___ `•. ¸.•      Have a nice day, Silja. 
4r13s

4r13s sagt:

Vor 1983 Tage
Beautifully Done

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